सूत्रों के मुताबिक, दोनों पक्ष विवाद वाली जगह से एक से डेढ़ किमी. पीछे जाएंगे। दोनों सेनाओं के पीछे हटने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आगे की वार्ता आयोजित होने की संभावना है।
चीन की हेकड़ी
दरअसल चीन लगातार सीमा पर हेकड़ी दिखा रहा था और मनमानी कर रहा था, लेकिन भारत के सख्त रुख ने उसे झुकने पर मजबूर कर दिया। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच रविवार को हुई बातचीत के बाद नतीजा भी सामने आया। इस बातचीत के बाद सोमवार को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने अपने कदम पीछे खींच लिए। सूत्रों का कहना है कि इतने दिनों से लगातार आक्रामक रुख अपनाए चीन का यह फैसला भारत के जवाबी आक्रामक रुख को देखते हुए आया है।
हालांकि अभी यह कहना मुश्किल है कि चीनी सेना कितनी पीछे हटी है। इसका सटीक तौर पर पता वेरिफिकेशन प्रक्रिया में ही चल पाएगा। सूत्रों का कहना है कि चीन की ओर से सैनिकों को कम करने की प्रक्रिया पर भारत पूरी नजर रखेगा। ऐसा 15 जून को गलवां क्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प को देखते हुए किया जाएगा। यह झड़प इसलिए हुई थी क्योंकि चीन ने दोनों देशों के बीच छह जून को हुई सहमति को मानने से इनकार कर दिया था और अपने सैनिक पीछे नहीं हटाए थे। इस बार भारत कोई जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं है।
इसमें चरणवार तनाव खत्म करने के लिए जरूरी कदम उठाने पर सहमति बनी थी। लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर पहले चरण की बातचीत छह जून को हुई थी। इसमें दोनों ओर से सहमति बनी थी कि तनातनी वाले स्थानों से सेनाओं को पीछे हटाया जाएगा, हालांकि गलवां घाटी में पीपी-14 पर दोनों सेनाओं के बीच झड़प से हालात और बिगड़ गए। तीन दिन पूर्व शुक्रवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख का दौरा कर सैनिकों को संबोधन के माध्यम से चीन को कड़ा संदेश दिया था।
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